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अटल जी - हमारे अभिभावक एवं प्रेरणास्रोत

युगपुरुष भारत रत्न अटलजी का हमारे परिवार से गहरा सम्बन्ध था। पिताश्री श्रद्धेय सीताराम मारू जी के साथ उनका आत्म प्रेम का रिश्ता 60 के दशक से था। जब कभी भी उनका रांची आना होता था, उनका या तो हमारे बड़ालाल स्ट्रीट के आवास में प्रवास होता था या अन्य कहीं प्रवास होता था तो समय निकाल कर हमारे निमंत्रण पर घर जरूर पधार कर अपना स्नेह तथा प्यार प्रदान करते थे। दक्षिण बिहार के जनसंघ और बाद में भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं से उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध थे। उनका व्यक्तित्व और स्वभाव ही ऐसा था कि पहली मुलाकात में उनसे मिलने वाला व्यक्ति उनसे प्रभावित हो जाता था।

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मार्च 1978 में विजय मारू और सुमन मारू के साथ हमारे आवास पर अटल जी की एक तस्वीर

1977 में प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई जी की केंद्र में बनी सरकार में अटलजी विदेश मंत्री बने। हमारे आमन्त्रण को स्वीकारते हुए 19 मार्च, 1978 में रांची आये और खचाखच भरे टाउन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि 'रांची एक्सप्रेस' से मेरा सम्बन्ध इसके जन्मकाल से है , इसलिए मुझे जब इसकी रोटरी मशीन पर छपाई आरम्भ होने के अवसर पर आने के लिए कहा गया तो मैं तुरंत राजी हो गया, और साथ में यह भी कहा कि मैं यहां एक मंत्री के रूप में नहीं, वरन एक पूर्व पत्रकार के रूप में आया हूं। ( उनके 19 मार्च, 1978 को दिए गए भाषण के महत्वपूर्ण अंश 'सुनहरी यादें' में प्रस्तुत किया गया है)

अटल जी विशेष विमान से दिल्ली से रांची आए। हम सभी इस कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे हुए थे। रांची पहुंचने पर हवाई अड्डे से अटलजी सीधे हमारे बड़ा लाल स्ट्रीट स्थित कार्यालय सह आवास पहुंचे। रोटरी मशीन का उद्घाटन करने के बाद हमारे आवासीय परिसर में सभी अतिथियों के साथ दोपहर का भोजन किया और थोड़ी देर के विश्राम के बाद पुनः वह प्रथम तल्ले के कार्यालय में आये। हर एक कर्मचारी से आत्मीय रूप से मिले। अटल जी का राजनीतिक व्यक्तित्व जितना विशाल है, उतना ही बड़ा है उनका हृदय। बड़ेपन का कहीं कोई प्रदर्शन नहीं। अटल जी से मिलते हुए, बात करते हुए 'रांची एक्सप्रेस' के किसी कर्मचारी को यह एहसास नहीं हुआ कि वे भारत के विदेश मंत्री से मिल रहे हैं।

कार्यालय भ्रमण के दौरान उनके साथ 'रांची एक्सप्रेस' के प्रबंध निदेशक सीताराम मारू एवं कार्यकारी निदेशक विजय मारू थे। बीच-बीच में पिताजी उन्हें अखबार की भावी योजनाओं की जानकारी भी दे रहे थे।
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अपर बाजार आवास पर अटलजी, पिताजी, विजय भैया एवं अन्य को भोजन करवाते हुए

वहां से वे पिताजी के साथ आगे के कार्यक्रम के लिए महात्मा गांधी नगर भवन पहुंचे। हमारे आमंत्रण पर श्री वाजपेई जी के अनुभव को जानने-सुनने के लिए अतिथिगण बहुत बड़ी संख्या में पहुंचे थे और पूरा नगर भवन खचाखच भरा हुआ था। अपनी शैली में श्री वाजपेई जी ने भाषण, चुटकियों के बीच गंभीर मुद्दों पर गंभीर चर्चा, कभी हास्य, कभी विनोद भरे विचारों से सभी श्रोताओं को प्रभावित किया। एक पत्रकार के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ गुजारे समय की चर्चा करते हुए उन्होंने कई स्मरण भी सुनाए।

लोकतंत्र में समाचार पत्र की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्र और निर्भीक समाचार-पत्र लोकतंत्र के आधार हैं, समाचार-पत्रों का कार्य मात्र सत्य की रक्षा करना ही नहीं, बल्कि परिवर्तन को सही दिशा में ले जाना भी है। अंत में उन्होंने 'रांची एक्सप्रेस' के प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि नाम 'एक्सप्रेस' होते हुए भी यह प्रत्येक शहर और कस्बों में रुक-रुक कर वहां से खबरें लाएगा।

भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी 1980 के वर्ष में बनी। 1980 के दशक में वाजपेयी जी का कई बार रांची आना हुआ। वक्त होने पर वे हमारे आवास पर जरूर पधारते थे।
समय-समय पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव-प्रचार के सिलसिले में अटलजी 1990 के दशक में भी रांची आये। उसी दौरान लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहते हुए दिसम्बर 1995 में उनका रांची आना हुआ। उन्होंने बारी पार्क में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित किया, जिसमें जमशेदपुर के पूर्व सांसद और झा. मु. मो. के नेता श्री शैलेन्द्र महतो को भाजपा की सदस्यता दी गई थी। अटलजी के सम्मान में रात्रि में हमारे आवास पर भोज का आयोजन किया गया। जिसमें श्री अश्विनी कुमार, श्री यशवन्त सिन्हा , श्री विनय कटियार के साथ-साथ शहर के प्रबुद्धजन और भाजपा के नेतागण भी शामिल हुए।

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अटल जी के रांची प्रवास के सप्ताह भर पहले 17 दिसम्बर, 1995 को पश्चिम बंगाल में बहुचर्चित पुरुलिया में हथियार गिराने की घटना घटी थी। अटलजी ने अगले सुबह घटना स्थल पर जाने का निर्णय लिया। श्री विनय कटियार, श्री धीरेन्द्र अग्रवाल , श्रीमती रीता वर्मा के साथ हम सब सड़क मार्ग से घटना स्थल पर गए। पश्चिम बंगाल के झालदा के निकट के थाने, जहां केस दर्ज किया गया था, जाकर पुलिस अधिकारियों से घटना की जानकारी ली तथा विमान द्वारा गिराए गए हथियार के टूटे हुए लकड़ी के बक्सों को देखा तथा फिर वहां से उस स्थान पर भी गए जहां हथियार गिराए गए थे।

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अटल जी पुलिस अधिकारियों से हथियार गिराए जाने के बारे में जानकारी लेते हुए
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हथियार गिराए गए स्थल का निरीक्षण करते हुए
वर्ष 1996 में अटलजी पहली बार हमारे देश के प्रधानमंत्री 13 दिनों के लिए बने। उसके बाद 1998 में 13 महीनों के लिए और 1999 में तीसरी बार 2004 तक प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया। 1999 की एक तस्वीर जिसमें पिताश्री श्री सीताराम मारू ने रांची हवाई अड्डे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल जी का स्वागत किया।

मार्च 2002 में प्रधानमंत्री अटलजी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मुझे राज्यसभा का सदस्य बनाया। सदन में और राज्यसभा के सत्र के दौरान एवं पार्टी सांसदों की साप्ताहिक बैठक में हमेशा अटलजी से मुलाकात एवं उनका सम्बोधन सुनने का अवसर मिलता रहा। 2004 के बाद भी वह स्वस्थ रहने तक भाजपा सांसदों की साप्ताहिक बैठक में प्रायः आते थे। 2006 तक उनसे सदन में और उनके आवास पर कई बार मिलने का अवसर मिला। उनसे अंतिम बार जून 2008 में मुलाकात का अवसर झारखण्ड के भाजपा के कुछ विधायकों , श्री यशवन्त सिन्हा जी और श्री रघुवर दास जी के साथ मिला।

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दैनिक 'रांची एक्सप्रेस' ने 25 दिसम्बर, 2012 को 'युगपुरुष भारत रत्न' श्री वाजपेयी जी की 88वें सालगिरह पर 8 पृष्ठों का विशेषांक निकाला और उसी शाम रांची के कैपिटल हिल होटल में एक कार्यक्रम रखा जिसमें मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद श्री यशवन्त सिन्हा, श्री शत्रुघ्न सिन्हा, झारखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष श्री सी. पी. सिंह और शहर के प्रबुद्धजन उपस्थित थे। उस भव्य समारोह में वक्ताओं ने अटलजी को 'भारत रत्न' दिए जाने की मांग भी की।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि अटल जी की प्रतिभा को पूरी दुनिया मानती है। कूटनीतिक ताकत को उन्होंने परिभाषित किया और अपनी विलक्षण क्षमता से देश और दुनिया को अवगत कराया। श्री मुंडा ने कहा कि झारखण्ड का गठन भी श्री वाजपेयी की वजह से हुआ। उन्होंने उनके स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना की और 'भारत रत्न' से सम्मानित करने के लिए केंद्र से आग्रह किया।

विशिष्ट अतिथि एवं पूर्व वित्तमंत्री श्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि उन्होंने पूरे छह वर्षों तक उनके प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त एवं विदेशमंत्री के रूप में कार्य किया। हर दिन हम लोग कुछ न कुछ उनसे सीखते थे। उन्होंने भी झारखण्ड के जनप्रतिनिधियों और झारखण्ड सरकार से अटल जी को भारत रत्न देने का प्रस्ताव केंद्र में भेजने का आह्वान किया।

भाजपा सांसद एवं अभिनेता श्री शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने राजनीति में आने से संबधित घटनाक्रम पर विस्तार से जानकारी दी और कहा कि नानाजी देशमुख उनके पहले राजनीतिक गुरु थे, बाद में अटल जी, आडवाणी जी ने उन्हें राजनीति का गुर सिखाया। विधानसभा अध्यक्ष एवं रांची के विधायक श्री चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि अटल जी का लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहा। अटल जी हमारे प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। उनमें सच और सही बातों को बेबाक ढंग से प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता थी।

'रांची एक्सप्रेस' के प्रधान संपादक श्री बलबीर दत्त ने प्रस्तवना वक्तव्य में अटल जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके विराट चरित्र को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि राजनीति में आने के पहले अटल जी पत्रकारिता से जुड़े रहते हुए 'पांचजन्य' और 'वीर अर्जुन', राष्ट्रधर्म समाचार-पत्रों का संपादन किया। 1957 में 33 वर्ष की आयु में वे लोकसभा पहुंचे। अटल जी ने मिली - जुली सरकार का सफल प्रयोग किया। 24 पार्टियों वाले अलग - अलग विचारों वाले दलों की सरकार चलाई। उन्होंने कहा की अटलजी के विरोधी भी उनकी सराहना करते थे।

'रांची एक्सप्रेस' के निदेशक के नाते मैंने अटल जी का 'रांची एक्सप्रेस' के साथ आरम्भ से संबंधों का जिक्र किया। साथ-साथ अटल जी के कार्यकाल में देश को विकास के लिए आरम्भ की गई महत्वपूर्ण योजनाओं का जिक्र किया जिनमें सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना शामिल थे। अजय मारु ने 'रांची एक्सप्रेस' के संपादक रहते हुए प्रधानमंत्री अटल जी के साथ त्रिनिडाड, जमैका , मोरक्को , जर्मनी , अमेरिका , मलेशिया , मॉरीशस की यात्रा से जुड़े स्मरणों को भी साझा किया।


उपरोक्त विशेषांक पर प्रकाशित मेरा लेख
अटल बिहारी वाजपेयी - अभिभावक, प्रेरणास्रोत व मार्गदर्शक

 

इतना विशाल एवं बहुआयामी व्यक्तित्व है श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का। उनके संबंध में कुछ लिखना एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा दुरूह कार्य है। फिर, मेरा तो सौभाग्य रहा है श्री वाजपेयी के विविध स्वरूपों को निकट से देखने का। मैंने बचपन के दिनों में उन्हें एक स्नेही पारिवारिक अभिभावक के रूप में देखा, राजनीति में तो मैंने उन्हीं को प्रेरणास्रोत मानकर प्रवेश किया और जब सांसद बना तो श्री वाजपेयी मेरे मार्गदर्शक थे। यह भी एक सुखद संयोग ही था कि सांसद के रूप में मेरे प्रथम दो वर्षों के दौरान श्री वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे।

पारविरिक घनिष्ठता
यह तो सर्वविदित है कि मेरे पिता स्व. सीताराम मारू के साथ श्री वाजपेयी की व्यक्तिगत घनिष्ठता थी। भारतीय जनसंघ के दिनों में वाजपेयी जी का जब भी रांची आना होता हमारे घर आते ही थे। घंटों पिताजी से बातें होतीं और हम सब भाइयों से भी कुछ न कुछ पूछते रहते। उनके स्वभाव में विनोदप्रियता तो थी ही, जो हमेशा उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग रहा है, और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनका यही स्वभाव था। उनका यही गुण उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण रहा है। उनके सान्निध्य में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सहज महसूस करता है।

रोटरी मशीन का उद्घाटन
श्री वाजपेयी पारिवारिक घनिष्ठता के कारण साप्ताहिक के दिनों से ही ‘रांची एक्सप्रेस' में रुचि लेते थे। वे स्वयं आरम्भिक वर्षों में पत्रकार रहे, इसलिए समाचार-पत्र में उनकी दिलचस्पी स्वाभाविक थी। उनके नयी दिल्ली के पते पर साप्ताहिक के समय से ‘रांची एक्सप्रेस' नियमित रूप से जाता था।
1976 में ‘रांची एक्सप्रेस' दैनिक हुआ और 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी की केन्द्र में सरकार बनी। श्री वाजपेयी उस सरकार में विदेश मंत्री बने। 1978 में हमने प्रिंटिंग के लिए एक सेकेंड हैंड रोटरी मशीन खरीदी और आपस में विचार किया कि इस मशीन के उद्घाटन के लिए श्री वाजपेयी से अनुरोध किया जाये। एक सेकेंड हैंड मशीन का उद्घाटन देश के विदेश मंत्री से करवाने में थोड़ा संकोच अवश्य था, पर विश्वास था कि श्री वाजपेयी इनकार नहीं करेंगे।
मेरे पिता सीतारामजी मारू श्री वाजपेयी से मिलने उनके नयी दिल्ली स्थित सरकारी आवास में गये। साथ में मैं भी था। ड्राइंग रूम में श्री वाजपेयी के साथ श्रीमती कौल, उनकी पुत्री, पिताजी और मैं थे। उसी समय श्री सिकन्दर बख्त वहां आये, जो श्री मोरारजी देसाई की सरकार में श्री वाजपेयी के साथ मंत्री थे और उनके मित्रों में एक थे। श्री बख्त उन्हीं दिनों संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के देशों की यात्रा से लौटे थे और अपनी यात्रा के संस्मरण श्री वाजपेयी से बांटने आये थे। श्री बख्त के जाने के पश्चात् पिताजी ने रोटरी मशीन का संक्षिप्त विवरण देते हुए उद्घाटन के लिए श्री वाजपेयी से आग्रह किया, जिसे उन्होंने तुरन्त स्वीकार कर लिया। स्वाभाविक तौर पर मुझे और पिताजी को बहुत अच्छा लगा। रोटरी मशीन के उद्घाटन के लिए श्री वाजपेयी भारत सरकार के विमान से रांची आये। ‘रांची एक्सप्रे' परिसर में उद्घाटन किया तथा घर में भोजन के पश्चात् नगर भवन में आयोजित कार्यक्रम में रांची के विशिष्टजनों तथा रांची की जनता की उपस्थिति में बड़ी संख्या में लोगों को सम्बोधत किया। अपने भाषण में श्री वाजपेयी ने ‘रांची एक्सप्रेस' के साथ अपने करीबी रिश्ते की विस्तार से चर्चा की। एक साधारण सेकेंड हैंड मशीन का उद्घाटन कर श्री वाजपेयी ने जता दिया कि पिताजी से उनका संबंध कितना स्नेहपूर्ण था।
जैसा कि सर्ववदित है, जनता पार्टी की सरकार अधिक समय तक नहीं टिकी। नये चुनाव हुए और कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गयी। 1980 में जनसंघ जनता पार्टी से बाहर आ गया और भारतीय जनता पार्टी के नाम से नयी राजनीतिक पार्टी की स्थापना हुई। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में श्री वाजपेयी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसी दौरान राजनीति में मेरी दिलचस्पी उत्पन्न हुई। पिताजी सामाजिक सेवा के क्षेत्र में थे, पर सक्रिय राजनीति से दूर थे। लेकिन मेरी रुचि समाज सेवा तथा राजनीति दोनों में जगी और इसके पीछे श्री वाजपेयी का व्यक्तित्व ही था।
देश का राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी का प्रबल बहुमत से प्रधानमंत्री बनना, फिर भाजपा के समर्थन से वी.पी. सिंह का प्रधानमंत्री बनना और उसके बाद गठबंधन की राजनीति का दौर। इन सबसे राजनीति में मेरी रुचि और बढ़ी और 1980 के बिहार विधानसभा चुनाव से सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।

वनांचल समिति का कोषाध्यक्ष
1996 से पहले की बात है, जब पुरूलिया (प. बंगाल) के निकट हथियार गिराने की घटना हुई। लगभग उसी समय झारखंड के प्रमुख राजनीतिज्ञ श्री शैलेन्द्र महतो को भाजपा में शामिल करने का एक कार्यक्रम रांची में हुआ। इन्हीं घटनाओं के क्रम में श्री वाजपेयी का रांची आगमन हुआ। वे पुरूलिया के निकट उस स्थल पर भी गये, जहां हथियार गिराये गये थे। 1996 के आम चुनाव के बाद भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटलजी प्रधानमंत्री बने, हालांकि उनकी सरकार मात्र 13 दिन चल पायी।
उसी अवधि में मुझे भाजपा की वनांचल समिति का कोषाध्यक्ष बनाया गया और इस तरह राजनीति में मेरा औपचारिक प्रवेश हुआ। मुजफ्फरपुर में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री अश्विनी कुमार ने की, जिन्हें हम ‘अश्विनी चाचाजी‘ कहते थे। वह भी पिताजी के अभिन्न मित्रों में से थे। मुझे उस बैठक में जाने का मौका मिला। बैठक में अटलजी भी आये, जो उस समय पूर्व प्रधानमंत्री हो गये थे।
मुजफ्फरपुर से पटना तक अटलजी के कारवां के साथ पटना आया। वह पटना में श्री आर.के. सिन्हा के आवास पर रुके। उन्हें रात्रि ट्रेन से कानपुर जाना था। श्री वाजपेयी के साथ उनके दामाद श्री रंजन भट्टाचार्य भी थे। रात्रि भोज श्री सिन्हा के आवास पर ही हुआ। उसी वक्त श्री वाजपेयी से अकेले में बात करने का मौका मिला। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान ‘रांची एक्सप्रेस‘ द्वारा भाजपा का खुलकर समर्थन करने का उल्लेख किया। मैंने उन्हें उस समय के हालात से अवगत कराया।
श्री वाजपेयी ने पिताजी का हालचाल पूछा और मुझसे कहा कि पार्टी में सकारात्मक भूमिका के साथ काम करो। उनसे बातचीत के बाद मन हल्का हुआ। रांची लौटा और ‘रांची एक्सप्रेस‘ के सम्पादक की हैसियत से काम करना आरम्भ किया। 1998 तथा 1999 के लोकसभा चुनावों में पार्टी द्वारा दी गयी सभी जिम्मेदारियों को पूरी क्षमता से निभाया। इनमें राष्ट्रीय नेताओं के दौरे की व्यवस्था भी शामिल थी। फिर 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी सक्रियता से कार्य किया। वनांचल (छोटानागपुर-संतालपरगना) में भाजपा का बेहतरीन प्रदर्शन रहा और पार्टी 33 सीटों पर विजयी रही।
उस समय तक अटलजी 1998 और 1999 के चुनावों के बाद फिर से प्रधानमंत्री बन चुके थे। उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी विदेश यात्राओं में प्रेस के प्रतिनिधि भी साथ होते थे। 1999 और 2001 के बीच ‘रांची एक्सप्रेस‘ के संपादक के रूप में मुझे उनके साथ चार बार विदेश यात्रा में जाने का अवसर मिला।
पहली बार त्रिनिदाद और जमैका, मोरक्को, जर्मनी फिर 2000 में अमेरिका और 2001 में मलयेशिया और मारीशस गया और इन सभी देशों से श्री वाजपेयी से संबंधित समाचार ‘रांची एक्सप्रेस‘ को प्रेषित किया। यह मेरे लिए नया और रोमांचक अनुभव था। विमान में अटलजी से कई बार अकेले में बात करने का मौका मिला। अमेरिका यात्रा सितम्बर 2000 में थी और दो महीने बाद ही झारखंड अस्तित्व में आने वाला था। उसी संदर्भ में मैंने एसोचैम के झारखंड विषयक रोड मैप का जिक्र श्री वाजपेयी से किया।

वाजपेयीजी का अद्भुत भाषण
वाशिंगटन में एक बड़े सभागार में श्री वाजपेयी का भाषण हुआ। सभागार एनआरआई से खचाखच भरा था। उस कार्यक्रम में श्री वाजपेयी का भाषण आज भी मेरे जेहन में ताजा है। अक्सर ऐसे मौकों पर प्रधानमंत्री लिखित भाषण पढ़ते हैं। जब श्री वाजपेयी को लिखित भाषण दिया गया तो उन्होंने उसे एक तरफ रख दिया। फिर वहां उपस्थित लोगों से हिन्दी में बोलने की इजाजत मांगी। सभागार में उपस्थित सभी ने एक स्वर से इसका समर्थन किया। इसके पश्चात् श्री वाजपेयी ने हिन्दी में जो धाराप्रवाह भाषण दिया, उससे सभागार में उपस्थित पांच हजार श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।

Event

नई दिल्ली से अमेरिका जाने के क्रम में विशेष विमान पर अटल जी के साथ बात करते हुए

एक घंटे से भी अधिक का भाषण बेमिसाल था और सभागार बार-बार तालियों से गूंज उठता था। उनके उस भाषण के कुछ अंश यहां उद्धृत कर रहा हूं- ‘‘आपातकाल के दौरान जब हम जेल में थे तभी मारिशस में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ था। उस सम्मेलन में एक प्रस्ताव पारित हुआ कि अमेरिका में संयुक्त राज्य के मुख्यालय हमारे देश से जो लोग जाते हैं उन्हें वहां संबोधन हिन्दी में ही करना चाहिए। मैंने उस समय जेल में यह निर्णय लिया कि अगर ऐसा मौका कभी मुझे मिला और बोलने का अवसर मिला तो मैं हिन्दी में ही बोलूंगा। आपातकाल के बाद जब मैं विदेशमंत्री बना और पहली बार मुझे भारत के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने का मौका मिला तो मैं हिन्दी में ही बोला। इस विश्व संस्था में अधिकतर लोग अपनी भाषा में ही बोलते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र में ऐसा प्रबंध है कि उसका अनुवाद अंग्रेजी में करके तुरंत सुना दिया जाता है। छोटे-छोटे देश के प्रतिनिधि भी संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात अपनी भाषा में कहते हैं। वियतनाम जब आजाद हुआ था तथा तब उसे पहली बार संयुक्त राष्ट्र में बोलने का मौका मिला तो वहां के प्रतिनिधि अपनी भाषा में ही बोले। हमारे पड़ोसी देश नेपाल, जो कि एक हिन्दू राष्ट्र है तथा पाकिस्तान एवं बांग्लादेश अपनी बात वहां अंग्रेजी में ही रखते हैं। वे पता नहीं अपनी भाषा का प्रयोग क्यों नहीं करते।

मैं यहां भाषा का विवाद खड़ा नहीं करना चाहता। भाषा तो अपनी बात, अपने विचार प्रकट करने का माध्यम है। मैं अंग्रेजी से ज्यादा अच्छी तरह हिन्दी बोल सकता हूं। अतः मैं इसका प्रयोग ज्यादा करता हूं। लेकिन अगर मेरे बगल में बैठे विदेश मंत्री जसवंत सिंह को हिन्दी में भाषण देने को कहेंगे तो यह आप उनसे ज्यादती करेंगे। वह हिन्दी जानते हैं, पर वह अंग्रेजी में अपनी बात अच्छी तरह रख सकते हैं तो उन्हें उसी का प्रयोग करना चाहिए। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते और फिर भी बोलने की कोशिश करते हैं तो स्थिति गजब हो जाती है। इस प्रसंग में उन्होंने एक वाकया बताया।
Event

वाशिंगटन यात्रा के दौरान पत्रकारों के साथ हास्य के कुछ पल

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद मेरे अंग्रेजी के प्राध्यापक ने कुछ समय बाद कहा कि अब मैं वापस इंगलैंड जाने की सोच रहा हूं। यह निर्णय उन्होंने 'भारत छोड़ो आन्दोलन' की प्रेरणा से नहीं लिया था, पर वे बोले कि आजकल लोग जिस तरह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं उस भाषा को सुनने से अच्छा तो होगा कि मैं इंगलैंड चला जाऊं। संयुक्त राष्ट्र में जब मैंने अपना भाषण हिन्दी में दिया तो दक्षिण भारत के मेरे एक मित्र ने कहा कि अगर हमारे देश का प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री दक्षिण भारत से हुए और अगर उसे संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने का मौका मिला तो वह वहां कौन-सी भाषा में बोलेंगे। मैंने कहा कि अगर उस व्यक्ति की भाषा तमिल है तो तमिल में बोलें, कन्नड़ है तो कन्नड़ में और अगर तेलुगू है तो तेलुगू में बोलना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि गत लोकसभा चुनाव के पहले मेरी सरकार एक वोट के कारण गिर गई। और उस एक वोट से मुझे हराने वाले लोग फिर लोकसभा चुनाव में मुझे हराने के प्रयास में जिता दिया। प्रजातंत्र में एक वोट की कीमत कितनी हो सकती है यह इस बात के उदाहरण से पता चलता है कि मेरी सरकार एक वोट से गिर गई। जब सरकार गिर गई और चुनाव आया तो मैंने जनता से सिर्फ एक वोट की मांग की। मेरे विरोधी दलों ने सोचा एक वोट मांग रहा है जनता से, देने दो और वही एक वोट मिलकर मेरी सरकार को पुनः सत्ता में ला दिया।

मेरी उसी यात्रा के दौरान न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने जो भाषण दिया, उसे मुझे संयुक्त राज्य के सभागार में सुनने का मौका मिला वह भी लाजवाब था। उसे सुनने का मौका मिलना एक यादगार लम्हा था।
मैं 2002 में झारखंड से राज्यसभा का सदस्य बना। इस उपलब्धि के पीछे अटलजी के अलावा आडवाणी जी, कुशाभाऊ ठाकरे जी तथा यशवंत सिन्हा जी का आशीर्वाद था।
मैंने सांसद के रूप में शपथ ली। उसके बाद गुजरात दंगों की वजह से सदन कई दिन नहीं चला। चूंकि नया था, इसलिए अनुभव के लिए लोकसभा की कार्यवाही देखने भी चला जाया करता था। लोकसभा में गुजरात दंगों पर अटलजी ने विपक्ष को जो जोरदार जवाब दिया, वह अपने आप में अभूतपूर्व था। श्री वाजपेयी के तर्कों के आगे विपक्ष की बोलती बन्द हो गयी।

2004 के चुनाव
जैसा कि मैंने पहले कहा, सांसद के रूप में मेरे प्रथम दो वर्षों के दौरान श्री वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उनसे संसद में आते-आते यदा-कदा मुलाकात हो जाया करती थी, लेकिन उनकी व्यस्तता इतनी अधिक थी कि विस्तार से कभी चर्चा नहीं हो पाती थी।
2004 के लोकसभा चुनाव निर्धारित समय से थोड़ा पहले करा लिये गये। श्री वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में सरकार ने जो बेहतरीन काम किया था और उनकी जो लोकप्रियता थी, उसे देखते हुए एनडीए की सत्ता में वापसी तय मानी जा रही थी, लेकिन अप्रत्याशित रूप से भाजपा की सीटें कांग्रेस से थोड़ी कम रह गयीं। परिणामस्वरूप केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी और डा. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला।
उन चुनावों के बाद श्री वाजपेयी की सक्रियता क्रमशः कम होती गयी और उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहने लगा। यह तय हो गया था कि श्री वाजपेयी 2006 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। भाजपा ने श्री लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली। यूपीए सत्ता में बना रहा और प्रधानमंत्री के रूप में डा. मनमोहन सिंह की दूसरी पारी आरम्भ हुई। यूपीए के दूसरे कार्यकाल में आम लोगों की कितनी परेशानी बढ़ी, इसे हम सब जानते हैं, पर यह इस लेख का विषय नहीं है।

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