पूरे विश्व को जनवरी 2020 में कोविड-19 ने अपनी चपेट में ले लिया। इस संकट से भारत भी अछूता नहीं रहा। मार्च माह से हमारे देश के साथ झारखंड में भी कोरोना संकट ने दस्तक दे दी। 22 मार्च से झारखंड में लॉकडाउन लागू कर दिया गया और राज्य के लोगों ने कोरोना संकट से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी दिशा-निदेर्शों का पालन करना शुरू कर दिया। 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लग गया। किसी ने यह नहीं सोचा था कि अपने जीवनकाल में ऐसी स्थिति देखने को मिलेगी ।
मैंने 19 मार्च को सेवा सदन के पदधारियों के साथ मिलकर कोविड वार्ड बनाने की योजना पर काम करना शुरू किया। सेवा सदन कार्य समिति के सदस्यों के सहयोग से कोविड वार्ड बन गया। साथ-साथ राज्य के स्वास्थ्य सचिव एवं रांची के उपायुक्त से कोरोना संकट से उबरने के उपायों पर चर्चा आरंभ कर दी। रांची के तत्कालीन उपायुक्त श्री राय महिमा पत रे ने मुझ से गरीबों के लिए भोजन और सूखे राशन की व्यवस्था करवाने का अनुरोध किया।
इसके बाद मैंने 23 मार्च को रांची क्लब के अध्यक्ष श्री राजेश शाहदेव के साथ क्लब की कार्य समिति के सदस्यों के साथ बैठक की। इसके बाद 24 मार्च से क्लब के कर्मचारियों के साथ मिलकर प्रतिदिन पांच सौ लोगों के लिए जिला प्रशासन के निर्देशित स्थानों पर पका भोजन भिजवाना शुरू किया गया। यह सिलसिला 28 अप्रैल तक जारी रहा। तब तक प्रतिदिन भेजे जाने वाले पके भोजन की संख्या एक हजार तक पहुंच गयी।
24 मार्च से ही मैंने मित्र राजीव मित्तल की सलाह और उनके ट्रस्ट ‘रांची न्यूरोलॉजिकल ट्रस्ट’, जिनके ट्रस्टी डॉ. प्रकाश चन्द्रा एवं डॉ. सुनील रूगंटा हैं, ने दिल खोलकर दस हजार के करीब सूखे राशन पैकेट बनवाये और रांची क्लब के साथ मिलकर 300 से 500 लोगों के बीच प्रशासन के सहयोग से वितरित किये जिसमें चावल , दाल, नमक, आलू, प्याज, साबुन दिया गया।
श्री माहेश्वरी सभा ने भी 23 मार्च से अपने भवन से ही गरीबों और जरूरतमंदों के बीच निःशुल्क 1000 लोगों को पका भोजन वितरण अपने भवन से करना प्रारम्भ किया। रांची क्लब से 28 अप्रैल को पका भोजन बंद होने के बाद भी माहेश्वरी सभा ने 29 अप्रैल से एक हजार से पंद्रह सौ लोगों के लिए पका भोजन प्रशासन के माध्यम से जरूरतमंदों के बीच भिजवाना आरंभ किया जो 31 मई तक जारी रहा। इस दौरान 10,000 से 12,000 सूखे राशन के पैकेट वितरित किये गये।
मई के अंतिम सप्ताह में जब प्रवासी मजदूर परिवार के साथ झुंड के झुंड में आने शुरू हुए, तब रांची-जमशेदपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से सूर्य उपासना भवन, बुंडू के निकट अपनी संस्था ‘संस्कृति विहार’ के माध्यम से उनकी सेवा की बड़ी पहल की गयी। प्रवासी मजदूरों एवं उनके परिवार में मिनरल वाटर, बिस्कुट, सत्तू एवं शीतल पेय (कोका कोला ) का वितरण किया गया। सचमुच में यह दृश्य काफी मार्मिक था।
इस पूरे कार्य में मुझे रांची क्लब के अध्यक्ष राजेश शाहदेव एवं उनकी समस्त टीम, रांची न्यूरोलॉजिकल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री राजीव मित्तल, डॉ. प्रकाश चन्द्रा एवं डॉ. सुनील रूंगटा, श्री माहेश्वरी सभा के अध्यक्ष श्री शिवशंकर साबू एवं वासुदेव भाला और मेरे बड़े भाई राजकुमार मारू एवं संस्कृति विहार के कार्यक्रम संयोजक प्रमोद कुमार सिंह का बहुत बड़ा सहयोग प्राप्त हुआ।
इसके अलावा जब अभियान प्रारंभ हुआ तो स्वेच्छा से रांची क्लब के चार सौ से अधिक सदस्यों ने 20 लाख रुपये एवं रांची न्यूरोलाजिकल ट्रस्ट ने 10 लाख
रुपये का सहयोग दिया।
इसके अलावा जब अभियान प्रारंभ हुआ तो स्वेच्छा से रांची क्लब के चार सौ से अधिक सदस्यों ने इस सेवा कार्य के लिए 20 लाख रुपये एवं रांची न्यूरोलाजिकल ट्रस्ट ने 10 लाख रुपये का सहयोग दिया।
इसके अतिरिक्त कोको कोला कंपनी ने 30 हजार बॉटल शीतल पेय जनमानस के बीच वितरित करने के लिए निःशुल्क दिये।
कोरोना काल में मैंने फिर से लेखन का कार्य आरम्भ किया और 22 मार्च से 31 मई तक अपने विभिन्न व्हाट्स-अप ग्रुप (जिसमें 4,000 के करीब मित्रगण जुड़े थे) के मित्रों को अपने किये जा रहे सेवा-कार्यों और आगे चलकर प्रतिदिन कोरोना काल में कार्य कर रहे योद्धाओं को नमन करते हुए उन्हें जानकारी उपलब्ध करवाते रहे। मेरे द्वारा प्रतिदिन जनहित संदेश भेजे गए। सभी सन्देश हूबहू संग्लन हैं।