हमारे पिता का जन्म 11 अक्टूबर, 1925 को रांची में बड़ालाल स्ट्रीट के हमारे वर्तमान आवास में हुआ। मेरे दादा जी श्री चैथमल जी मारू, जो अपने बड़े भाई श्री सुवालाल जी मारू के साथ 1920 में व्यापार के सिलसिले में राजस्थान से रांची में आकर बसे और साथ मिलकर व्यापार आरम्भ किया। समय रहते और परिवार बड़ा होते ही हमारे पितामहश्री ने बड़े भाई के साथ आपस में बंटवारे के बाद भी समाज और स्वजनों को कभी महसूस नहीं होने दिया कि परिवार में बंटवारा हो चुका है।
पिताजी ने एक सच्चे स्वयंसेवक की हैसियत से 10 वर्ष की उम्र से ही समाज सेवा में रुचि लेनी आरम्भ कर दी और आगे जाकर संघ के स्वयंसेवक बने। मेरे पिताजी की चार बहनें और एक छोटे भाई श्रीभगवान मारू, जो अपने अंतिम समय तक शहर की महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय थे। मेरे पिता और चाचा जी ने अपने पिताजी का वनस्पति घी और गल्ला किराने के थोक व्यापार में कम उम्र में ही सहयोग देना आरम्भ किया । आजादी के समय से रांची की विद्युत आपूर्ति का काम श्री गंगा प्रसाद जी बुधिया की कम्पनी “रांची इलेक्ट्रिक सप्लाई क.” के पास था। उनकी
राय से हमारे पिताजी और चाचा जी ने बिजली के यंत्रों की दुकान 1947 में हिन्दुस्तान इलेक्ट्रिक हाउस की स्थापना की।
पिता जी का विवाह 1940 में कोलकाता निवासी श्री हरदेव दास भाला की सबसे बड़ी पुत्री गीता देवी के साथ हुआ। विवाह होने के पश्चात पिता जी 1942 में अपने ननिहाल चितौड़गढ़ (राजस्थान) चले गए। वहां से ही पिता जी ने 1943 में हरिद्वार में डॉ. श्यामा प्रसाद जी मुखर्जी की अध्यक्षता में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में भाग लिया। मई, 1943 में श्री कुशाभाऊ जी ठाकरे ने चितैड़गढ़ में संघ की शाखा की स्थापना की और उसकी कमान पिताजी को सौंपी।
1946 में पिताजी पुनः रांची आ गए और उसके बाद इस क्षेत्र में प्रथम संघ की शाखा का आरम्भ किया। उसी वर्ष श्री अश्विनी कुमार (पूर्व सांसद एवं बिहार प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष) रांची आये और संघ की शाखा खोजते-खोजते पिताजी से परिचय हुआ और श्री कैलाशपति जी मिश्र ( बिहार जनसंघ, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष) से भी उसी वर्ष परिचय हुआ और उसके बाद वे अन्तिम समय तक हमारे पारिवारिक सदस्य रहे।
आजादी के बाद 1948 में संघ प्रमुख परम आदरणीय श्री माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी ) की गिरफ्तारी के बाद पिताजी के नेतृत्व में रांची में विशाल जुलूस निकाला गया। पिताजी सहित 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 6 महीने कारावास की सजा सुनायी गयी।
1951 में वे रांची की प्रसिद्द सामाजिक संस्था मारवाड़ी सहायक समिति के सचिव बनें।
1958 में रांची के प्रबुद्दजनों के साथ मिलकर 'नागरमल मोदी सेवा सदन' की स्थापना में अहम भूमिका निभाते हुए संस्थापक मानद सचिव बने।
31 अगस्त 1958 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. कृष्ण सिंह के साथ नागरमल मोदी सेवा सदन के उदघाटन की एक तस्वीर
धनिष्ठ पारिवारिक मित्र श्री जे. डी. सहाय के साथ
रांची में अपने मित्रों के साथ
पिताजी के घनिष्ठ मित्रों में पटना के श्री जेडी सहाय थे जिनसे हमारा पारिवारिक सम्बन्ध 1960 से था और पिताजी के मित्र श्री श्रीशिवभगवान साबू , श्री गौरीशंकर मोदी, श्री चण्डीप्रसाद धरनीधरका , श्री सत्यनारायण अग्रवाल, श्री श्रीभगवान गाड़ोदिया जैसे मित्रों के सहयोग और प्यार को भुलाया नहीं जा सकता तथा 'रांची एक्सप्रेस' की प्रगति में इन सभी महानुभावों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज सभी स्मृति शेष हैं।
1963 में साप्ताहिक 'रांची एक्सप्रेस' अपने मित्रों के सहयोग से आरम्भ किया जिसमें प्रमुख थे श्री हरीश चन्द्र कपूर, श्री गौरी शंकर मोदी, श्री आत्माराम शाह आदि तथा संपादक का दायित्व श्री बलवीर दत्त जी को दिया गया।
पिताजी को आरम्भ से ही निर्माण कार्य में गहरी रुचि थी। उन्होंने 1965-66 में मेन रोड पर रूपाश्री सिनेमा के
पास मेरे नानाजी श्री हरदेव दास भाला की भूमि पर 'हिन्दुस्तान भवन' इमारत का निर्माण करवाया जो एक समय की सबसे ऊंची इमारत थी तथा नानाजी के साथ मिलकर साड़ी का व्यापार आरंभ किया। साथ-साथ उसी भवन में 'मारू ब्रदर्स' के नाम से बिजली एवं रेडियो की दुकान आरंभ की। आज भी मेरे मामा श्री रामअवतार भाला और श्री गोविंद भाला, जिनका कोलकाता में बिजली उपकरणों का सबसे बड़ा प्रतिष्ठान है, की रांची में भी उसी इमारत में रांची शाखा संचालित करते हैं।
1967 में रांची के साम्प्रदायिक दंगों की मुझे पूरी स्मृति है। कश्मीर वस्त्रालय के मालिक श्री शादीलाल मल्होत्रा की हत्या के बाद जिस समय शहर में दंगा भड़का, उस वक्त हम डोरंडा स्थित संत जेवियर्स स्कूल में थे। मेरी बड़ी बहन मंजू लोरेटो कांन्वेंट में थी। पिताजी ने अपने मित्र श्री श्रीभगवान गाड़ोदिया (जिनके पुत्र-पुत्रियां भी हमारे स्कूल में थे) की गाड़ी भेजकर हमें स्कूल से घर बुलवाया और हम उन्हीं के घर सीधे चले गये। हमारे घर और उनके घर के बीच मस्जिद और मदरसा थे, जहां पथराव हो रहा था। शाम को हम घर पहुंचे, तब तक पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था। हमारे समाचार-पत्र “रांची एक्सप्रेस” के संपादक श्री बलबीर दत्त डॉ. फतेहउल्ला रोड की एक गली में कुछ हिन्दू परिवारों के साथ रहते थे। पिताजी ने उन्हें पुलिसवालों की मदद से वहां से हटाया और अन्य इलाकों से भी हिन्दुओं को निकालने का कार्य पिताजी ने किया। उन दिनों बिहार में संयुक्त सरकार थी, जिसमें भारतीय जनसंघ के दो मंत्री श्री विजय कुमार मित्रा और श्री रूद्र प्रताप षांड़गी रांची आये थे और रात्रि में हमारे घर आये थे। उस वक्त हिन्दपीढ़ी से बड़ी संख्या में हिन्दू अपनी रक्षा की गुहार करने इन मंत्रियों से मिलने आये थे।
वर्ष 1970 में पिताजी एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गये थे। डॉ. एस पाण्डेय ने उनके दाहिने पैर का आपरेशन कर उसमें लोहे का बोल्ट लगाया और पांच महीने के उपचार के बाद स्वस्थ होकर पिताजी काम पर लौटे। पिताजी को डायबिटीज की शिकायत थी। वह सुबह-शाम इंजेक्शन लेते थे और महाप्रयाण तक लेते रहे।
1971 का वर्ष हमारे लिए विशेष था, जिसकी याद आज भी ताजा है। हम 5 मई को अपनी एम्बेसडर गाड़ी से भारत दर्शन के लिए निकले थे। मां, पिताजी, बड़े भाई पवन, बड़ी बहन मंजू और मैं इस यात्रा में साथ थे। पटना से पिताजी के एक मित्र ने ड्राइवर भेजा था।
ओडिशा में कटक, पुरी होते हुए आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम पहुंचे और वहां से हैदराबाद गये। उसके बाद विजयवाड़ा गये, जहां से ड्राइवर वापस पटना चला गया और पिताजी ने स्वयं गाड़ी चलाने का जिम्मा लिया। यह उनके आत्मविश्वास का एक ज्वलंत उदाहरण था। सचमुच, जो काम दूसरों को असंभव लगता था उसे भी बिना संकोच अपने हाथ में लेकर शुरू कर देते थे और पूरा करके ही दम लेते थे। शायद इसका एक बड़ा कारण भगवान पर उनका अटूट विश्वास था।
आगे हम लोग तिरूपति होते हुए मद्रास, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, कोच्चि, कोयम्बटूर, ऊटी आदि गये। उसके बाद मैसूर, बंगलौर, गोवा, पुणे होते हुए मुम्बई पहुंचे। फिर गुजरात के अहमदाबाद, राजकोट, सोमनाथ यानी तीन धाम तय करने के बाद राजस्थान के उदयपुर, अजमेर, चितौड़गढ़, चोमू, जयपुर होते हुए दिल्ली पहुंचे और फिर आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी होते हुए 7 जुलाई को रांची वापस आये यानी पूरे दो महीने बाद। इन दो महीनों में उत्तर व पूर्वी भारत को छोड़कर पूरे देश में पिताजी के कारण ही भ्रमण कर पाये। पिताजी का रास्ते भर गाड़ी चलाना और हम सबका ध्यान रखना कितना कठिन था, पर उन्होंने बिना किसी थकान के यह भ्रमण पूरा किया। मुझे आज भी याद है कि उस वक्त मात्र 200 रुपये प्रतिदिन में कार में पेट्रोल और दिन भर के बाकी खर्च पूरे हो जाते थे।
1975 में पिताजी लायन्स क्लब, रांची के अध्यक्ष बने। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इस संस्था में हिन्दी के प्रयोग का प्रचलन आरंभ किया तथा निःशुल्क चिकित्सा शिविर, कुष्ठ चिकित्सा और नेत्र चिकित्सा शिविरों के आयोजन के साथ-साथ अन्य कार्य भी किये। वह मारवाड़ी कॉलेज एवं चाचा नेहरू विद्यापीठ के संस्थापक सदस्य थे।
चिन्मय मिशन के स्वामी तेजोमयानन्द जी के साथ
1980 के दशक में हमारे आवास पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी के साथ
1975 में ही देश में आपातकाल लगा। उस वक्त बिहार में कांग्रेस की सरकार थी। भारतीय जनसंघ के कई नेता गिरफ्तार किये गए और कई भूमिगत हुए। समाचार-पत्रों पर निगरानी रखी जा रही थी। इन परिस्थितियों को समझते हुए पिताजी ने 1976 में साप्ताहिक 'रांची एक्सप्रेस' को दैनिक करने का साहसिक निर्णय लिया। आपातकाल समाप्त होने के बाद 1977 में केंद्र में जनता दल की सरकार बनने के बाद 1978 में केंद्र की सरकार में विदेश मंत्री श्री अटलजी को 'रांची एक्सप्रेस' के कार्यक्रम में आमंत्रित किया।
1960 के दशक से हमारे आवास पर अटल जी, राजमाता सिंधिया, श्री कुशाभाऊ ठाकरे, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, श्री अश्विनी कुमार, श्री कैलाश पति मिश्र आदि नेताओं का पिताजी से व्यक्तिगत आत्मीय संबंध के कारण उनका प्रवास होता रहता था और मेरी मां और परिवार के सभी सदस्यों को उनकी सेवा कर के बहुत खुशी की अनुभूति होती थी। 1986 में इस क्षेत्र के सबसे प्रमुख समाजसेवी श्री गंगा प्रसाद जी बुधिया ने 'संस्कृति विहार' का कार्यभार पिता जी को सौंपा।
पिताजी की 1985-86 के दौरान दिल्ली के एस्कार्ट्स अस्पताल में हार्ट सर्जरी हुई थी। दिल्ली से लौटने के बाद रांची में कुछ दिन आराम करके फिर समाज सेवा में लग गये। ऐसा लगता था कि सर्जरी ने उनमें शिथिलता लाने के बजाय एक नयी ऊर्जा भर दी।
कर्मठता, सादगी, निष्ठा एवं दूरदृष्टि के साथ-साथ कोई भी सामाजिक या धार्मिक कार्य जब अपने हाथ में लेते थे, उसे मूर्त्त रूप देने में तन-मन-धन के साथ जुट जाते थे। उनका विश्वास था कि 'अच्छे और सच्चे कार्य में धन का अभाव कभी बाधा नहीं बनता'। पिताजी 1986 में पांच परगना क्षेत्र (बुंडू-तमाड़ ) के गांवों में 'संस्कृति विहार' के माध्यम से रात्रि पाठशाला, चिकित्सा शिविर जिसमें कुष्ठ रोगियों का इलाज और कमजोर वर्ग के लोगों की आंखों के ऑपरेशन तमाड़ में रांची से चिकित्सकों को ले जाकर करवाते थे।
बुंडू में उनकी मुलाकात श्री प्रधान सिंह मुंडाजी से हुई। उनका बुंडू के पास एदलहातु में पहाड़ पर एक बड़ा भूखंड था जिस पर श्री राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल का क्रशर चलता था। पिताजी श्री अग्रवाल के साथ अक्सर क्रशर स्थल पर जाते थे। उस इलाके में कई पहाड़ थे, पर क्रशर वाले पहाड़ की विशेषता यह थी कि सूर्योदय के समय उस क्रशर वाले पहाड़ पर सूर्य की पहली किरण पड़ती थी। पिताजी ने तुरंत ही श्री अग्रवाल और श्री प्रधान सिंह मुंडा जी से बात करके वहां भगवान भास्कर का 'श्री सूर्य उपासना भवन' बनाने का निर्णय लिया और उसके बाद अपने आर्किटेक्ट मित्र श्री कालिया जी के साथ मिलकर 'उपासना भवन' का प्रारूप 'रथ' रूपी 7 घोड़ों के साथ बनाया और कार्य आरंभ कर दिया ।
1990 में मेरे माता-पिता की शादी की 50वीं वर्षगांठ पर व़ृन्दावन के प्रसिद्ध कथावाचक पीयुष जी महाराज की भागवत कथा का भव्य आयोजन किया गया। संम्भवतः उस वक्त बहुत कम कथाओं का आयोजन होता था। 10 दिनों के इस कार्यक्रम में घर पर उत्सव का महोल था तथा हमारे सभी सगे-सम्बन्धी पूरे देश से हमारे आमन्त्रण पर आये थे। यह आयोजन हमारे लिए बहुत ही गौरव की बात थी। इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न करवाने में बड़े भाई श्री बिष्णु लोहिया एवं मित्रवर विश्वनाथ नारसरिया, हरि प्रसाद पेड़ीवाल एवं अन्य का बहुत सहयोग रहा।
24 अक्टूबर, 1991 में बुण्डू के निकट सूर्य उपासना भवन का शिलान्यास ज्योतिषपीठाधीश्वर बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी श्री वासुदेवानन्द सरस्वतीजी द्वारा हुआ तथा 25 जनवरी, 1994 को सूर्य उपासना भवन में भगवान भुवन भास्कर की प्राण-प्रतिष्ठा स्वामी श्री वामदेवजी महाराज द्वारा की गई और इस आयोजन में यजमान के रूप में हमारे चाचाजी श्री श्रीभगवान मारू और चाचीजी श्रीमती कमला देवी जी मारू थे। इस आयोजन में हमारे पारिवारिक सदस्य एवं बाहर से आये सम्बन्धियों के अलावा रांची से बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
मेरे पिताजी के छोटे भाई (मेरे चाचा जी ) श्री श्रीभगवान मारू भी रांची की कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से जुड़े थे। उनका निधन दिसम्बर, 1999 में हुआ। उनके दो पुत्र राजकुमार एवं संजय तथा तीन पुत्रियां आशा बाई, मधु बाई एवं मीरा हैं। छोटा पुत्र पिछले तीन दशकों से विशाखापट्टनम में सफलतापूर्वक विद्युत संयंत्र का व्यापार कर रहा है। संजय के पुत्र करण अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सिंगापुर में एच.एस.बी.सी. बैंक में कार्यरत है। बड़े पुत्र राजकुमार मारू पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए अपने परम्परागत व्यापार ‘हिन्दुस्तान इलेक्ट्रिक हाउस‘ को अपने छोटे पुत्र गौरव के साथ सफलतापूर्वक चला रहे हैं तथा बड़ा पुत्र निशान्त पिछले दो दशक से ऑस्ट्रेलिया में रह कर व्यापार कर रहा है। राजकुमार मारू सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है। वे कई वर्षों तक श्री माहेश्वरी सभा, रांची के अध्यक्ष रहे तंथा उनके कार्यकाल में सभा ने उल्लेखनीय प्रगति की।
देश के प्रसिद्ध उद्योगपति कोलकाता निवासी एवं बीआईटी मेसरा के संस्थापक श्रद्धेय श्री जी.पी. बिड़ला जी से भी सामाजिक कार्य के चलते पिताजी की घनिष्ठता थी। श्री बिड़ला से भी 'संस्कृति विहार' की पाठशालाओं को संचालित करने में सहयोग मिलता था जो आज तक जारी है।
पिताजी ने श्री रामस्वरूप जी रुंगटा, श्री विनोद कुमार जी गढ़यान, श्री हरीश जी बियानी, श्री यतीन्द्र नाथ सिंह, श्री गोपी कृष्णा जी बागला और अनेक महानुभावों को 'संस्कृति विहार' से जोड़कर आगे बढ़ाया।
पिताजी ने गुमला के निकट आंजन ग्राम में, किंवदंती के अनुसार, जो हनुमानजी का जन्म स्थल है, अंजनी माता का मंदिर और धर्मशाला दानदाताओं के सहयोग से बनवाया और निर्माण के समय महीने में 2-3 बार कार्य देखने 150 किलोमीटर आते-जाते रहे।
उसी प्रकार रांची के बड़ा तालाब के निकट 'चिन्मय आश्रम' तथा हरमू रोड में 'चेतन कुटी', सत्संग भवन के निर्माण में भी पिताजी की प्रमुख भूमिका रही।
पिताजी ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए धार्मिक-ग्रंथों के प्रकाशक 'गीताप्रेस', गोरखपुर की पुस्तकों का एक विक्रय केन्द्र हमारे कार्यालय परिसर में आरम्भ किया। जिसका पूरा कार्य पिताजी स्वयं देखते थे।
पिताजी को लोकनायक जयप्रकाश नारायण और आदरणीय नानाजी देशमुख (जिनका भी जन्म 11 अक्टूबर को ही पड़ता है) की तरह पद की कई लालसा नहीं थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ, बाद में भाजपा के साथ उनके दीर्घकालीन और गहरे संबंध थे। राष्ट्रीय स्तर के कई दिग्गज नेताओं के वह बहुत नजदीकी थे। उन्हें उनकी समर्पण भावना के मद्देनजर संगठन या सत्ता में कोई सम्मानजनक पद मिल सकता था। उन्हें उनके मन को इसके लिए टटोला भी गया था। लेकिन वह किसी पद को प्राप्त करने के लिए राजी नहीं हुए। उम्र बढ़ने के बावजूद पिताश्री अपना सारा समय सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों और रचनात्मक कार्यों में लगाते रहे।
पिताजी श्रद्धेय सीताराम मारू के स्वास्थ्य में वर्ष 2003 में कुछ गिरावट आने लगी। 'रांची एक्सप्रेस' के प्रधान संपादक श्री बलवीर दत ने अखबार की 40वीं वर्षगांठ आयोजित करने का सुझाव दिया जिसे हम सब ने स्वीकार किया। आम तौर पर 40वीं वर्षगांठ मनाने का कोई खास रिवाज नहीं है, लेकिन इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक 18 नवंबर, 2003 को रांची क्लब के प्रांगण में मनाया गया जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर भारत के तत्कालीन
उप राष्ट्रपति माननीय भैरों सिंह शेखावत जी पधारे थे। पिताजी उस दिन अत्यंत प्रसन्न थे, लेकिन अगले ही दिन उनका स्वास्थ तेजी से बिगड़ने लगा और 18 दिन बाद 6 दिसंबर को उनका महाप्रयाण हो गया। पिताजी के महाप्रयाण के समय हम सभी भाई-बहन और परिवारजन रांची में उपस्थित थे। झारखंड के महामहिम तत्कालीन राज्यपाल श्री वेद मारवाह और मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने हमारे घर आकर पिताजी के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित किए। रांची में सभी क्रिया-कर्म कार्यक्रम होने के पश्चात 22 दिसंबर, 2003 को दिल्ली के रफी मार्ग स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में एक श्रद्धांजलि सभा रखी गई जिसमें कई केंद्रीय मंत्री, सांसद एवं मित्रगण ने आकर पिताश्री को श्रद्धांजलि दी जिनमें प्रमुख श्री हुकुमदेव नारायण यादव, डॉ जेके जैन, श्री अश्विनी कुमार , श्री रवीन्द्र कुमार पांडे, श्री देवदास आप्टे, श्री धीरेन्द्र अग्रवाल, श्री अभय कान्त प्रसाद, श्री राजकुमार करवा, श्री शैवाल सहाय, श्री राजेन्द्र वैद्य आदि उपस्थित थे। हमारी मां का निधन 2 जनवरी, 2012 को रांची में हुआ।
19 नवम्बर को मारवाड़ी भवन में एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति मा. भैरों सिंह शेखावत जी के साथ
22 दिसम्बर 2003 को दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा में पूर्व राज्यसभा सांसद एवं
हमारे पारिवारिक सदस्य श्री अश्विनी कुमार
हमारी बड़ी बेटी सोनिया मारू खटोड़ की पारिवारिक तस्वीर।
हम तीन भाई और एक बहन में सबसे बड़े विजय भैया और सबसे छोटा मैं हूँ। विजय भैया रांची के विशप वेस्टकॉट से स्कूली शिक्षा पूरी कर बीआईटी मेसरा से 1969 में इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की। 1970 में कानपुर निवासी सुमनजी के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ। हम सब रेल-यात्रा कर शादी में कानपुर गए थे। शादी के बाद विजय भैया प्रिंटिंग प्रेस का काम देखने लगे तथा 1982 में राजमाता विजया राजे सिंधया जी के अनुरोध पर 'सूर्या मैगजीन' के सफल संचालन के लिए दिल्ली परिवार के साथ रहने चले गए। उन दिनों दिल्ली के प्रमुख चिकित्सक डॉ. जे.के. जैन जो आदरणीय नानाजी देशमुख के निकट थे, ने श्रीमती मेनका गाँधी से 'सूर्या मैगजीन' ली थी। विजय भैया ने दिल्ली में 'सूर्या मैगजीन' के कार्य के साथ-साथ 'रांची एक्सप्रेस' का कार्यालय झण्डेवाला में दीनदयाल शोध संस्थान की इमारत में खोला। उसी इमारत में नानाजी देशमुख भी रहते थे। वहां से हमारा कार्यालय 90 के दशक में आईएनएस भवन, रफी मार्ग में चला गया।
विजय भैया की एक सुपुत्री सोनिया तथा एक सुपुत्र मनीष ने दिल्ली में अपनी स्कूली शिक्षा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त की। सोनिया ने कमर्शियल आर्ट तथा मनीष ने श्रीराम कॉलेज, दिल्ली से वाणिज्य में डिग्री हासिल की। सोनिया का विवाह कोलकाता निवासी श्री कैलाश जी खटोड़ के चार्टर्ड एकाउन्टेंट पुत्र ऋृषि के साथ 1993 में रांची में सम्पन्न हुआ। आज सोनिया की एक पुत्री श्रेया और दो जुड़वा पुत्र ऋृत्विक एवं कार्तिक हैं और दोनों चार्टर्ड एकाउन्टेंट बनकर पिता के साथ कार्य कर रहे हैं। सोनिया, जिसे हम प्यार से सोनू बुलाते हैं, ने कलाकृति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी है। आज भी जगह-जगह उसकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगायी जाती है।
पुत्र मनीष का विवाह 1996 में दिल्ली निवासी श्री देवेन्द्र कुमार जैन जी की पुत्री अर्चना के साथ हुआ। इनके दो पुत्र अर्जुन एवं अरहम अभी शिक्षा प्राप्त कर रहें हैं। मनीष हमारे डिजिटल प्रिंटिंग के व्यवसाय को देख रहें हैं।
विजय भैया ने 'सूर्या मैगजीन' के कार्य पूरा होने के बाद आईएनएस बिल्डिंग में 'रांची एक्सप्रेस' का कार्यालय आरम्भ किया। साथ-साथ 90 के दशक में टीवी पर कार्यक्रमों और इस उद्योग पर 'युगश्री' के नाम से हिन्दी में मासिक पत्रिका आरंभ की। वह इस पत्रिका के संपादक भी रहे और टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक पर कई वर्षों तक वार्षिक पुरस्कार कार्यक्रम मुंबई में आयोजित किया।
संभवत 'युगश्री' टीवी कालाकारों और धारावाहिक को सम्मानित करने वाली पहली मीडिया कम्पनी थी। मुबंई में 'युगश्री' द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रसिद्ध धारावाहिक 'महाभारत' में भीष्म पितामाह की भूमिका निभाने वाले श्री मुकेश खन्ना को भी पुरस्कृत किया गया था। साथ-साथ वह एकल अभियान के प्रमुख श्री श्याम जी गुप्त के साथ लग कर गांवों मे शिक्षा के प्रचार-प्रसार में लग गये। पिछले दो दशकों में एकल अभियान के विभिन्न पदों पर रहे। वर्तमान में वह एकल अभियान के संवाद प्रभारी हैं एवं विद्या भारती एवं दीदी मां साध्वी ऋृतंभरा जी के प्रकल्प से भी जुड़े हैं। हमने अपने बड़े भैया विजय भैया और सुमन भाभी की शादी के 50 वर्ष पूरे होने पर 7 एवं 8 मार्च 2020 को कार्यक्रम रांची स्थित आवास पर रखा। कोरोना के चलते इस कार्यक्रम को संक्षिप्त रखा गया था। यह कार्यक्रम 8 मार्च को घर पर भजन-संध्या के साथ सम्पन्न हुआ जिसमें हमारे परिवार के सभी सम्बन्धी और दोस्तों ने शिरकत की।
दूसरे बड़े भाई पवन का विवाह 1979 में कोलकाता निवासी श्री रामनिवास जी सोढ़ानी की सुपुत्री सरोज जी के साथ हुआ। उनके दो पुत्र पुनीत एवं नवनीत हैं।
पवन 30 वर्ष की आयु में 1987 में छोटानागपुर चेम्बर ऑफ कामर्स के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। उसी वक्त उत्तर बिहार में भीषण बाढ़ आयी थी तथा बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पवन ने चेम्बर के नेतृत्व में फिल्मी कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा के साथ एक बड़ा कार्यक्रम कर नगद, कपड़े और भोजन पदार्थ, दवाई बाढ़ पीड़ितों के लिए उतर बिहार भेजा।
1991 में पवन उस वक्त के दक्षिण बिहार के सबसे अधिक प्रसारित समाचार पत्र 'रांची एक्सप्रेस' के संपादक बने। साथ-साथ 'सांध्य रांची एक्सप्रेस' के सम्पादक भी रहे।
1995 में पवन ने श्री श्याम मित्र मण्डल के साथ मिलकर रांची में पहली बार प्रसिद्ध रामकथा वाचक श्री मोरारी बापू
की भव्य श्री राम कथा का आयोजन जिला स्कूल, रांची के प्रांगण में करवाया। 1996 में वह व्यापार आगे बढ़ाने के सिलसिले में बेंगलुरू चले गये। वहां उन्होंने डिजिटल प्रिंटिंग का कार्य आरंभ किया।
अपने बड़े बेटे पुनीत का विवाह 2006 मे चेन्नई निवासी श्री श्रीकृष्ण राठी की सुपुत्री कविता के साथ किया। पुनीत ने 2011 में न्यूजीलैंड से एम.बी.ए. करने के बाद कुछ वर्ष वहां कार्य किया तथा फिलहाल बेंगलुरू में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। छोटे बेटे नवनीत का विवाह 2009 में बेंगलुरू निवासी श्री अशोक जालान की सुपुत्री तन्नु के साथ सम्पन्न हुआ। उनकी एक बेटी काश्वी है। नवनीत सरोज प्रिंटर्स के नाम से डिजिटल प्रिंटिंग में लगा हुआ है जिसे पवन ने 1996 में आरम्भ किया था।
इस वेबसाइट के बनते-बनते मेरे बड़े भ्राता पवन का बेंगलुरु में 5 नवंबर 2021 को अचानक हृदय गति रुक जाने के कारण महाप्रयाण हो गया। हम सब रांची से अगली सुबह 6 नवंबर को बेंगलुरू गए तथा दाह-संस्कार वहीं करके बाकी के श्राद्ध-कर्म के सभी कार्यक्रम रांची में हमारे बड़ा लाल स्ट्रीट के आवास में संपन्न हुए जहाँ पर पवन जन्म वर्ष 1957 से 1996 तक निवास करता था। पवन के निधन पर झारखण्ड के महामहिम राज्यपाल श्री रमेश बैस, मुख्यमंत्री माननीय श्री हेमन्त सोरेन, भाजपा के राष्ट्रीय नेता एवं राज्यसभा सांसद श्री ओम प्रकाश माथुर जी एवं अन्य ने भी शोक व्यक्त किया। बेंगलुरू से हमारे पारिवारिक सदस्य रांची आए तथा 14 नवंबर को मेरे कांके रोड निवास पर एक दिवसीय श्रद्धांजलि सभा आहूत हुई जिसमें रांची के सभी रिश्तेदार, वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख प्रबुद्ध वरिष्ठजन, मित्रगण के अलावा केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, राज्यसभा सांसद श्री महेश पोद्दार एवं दीपक प्रकाश, रांची के सांसद श्री संजय सेठ, विधायक श्री सी.पी. सिंह, पूर्व सांसद श्री रवीन्द्र राय, पूर्व सांसद श्री यदुनाथ पांडे, झामुमो की नेत्री श्रीमती महुआ माजी आदि एवं विशाखापट्टनम, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, मुंबई, नागपुर, जयपुर, दिल्ली, पीलीभीत, कोलकाता, गुमला, चाईबासा आदि स्थानों से हमारे रिश्तेदार भी उपस्थित हुए। श्राद्ध-कर्म एवं छमाही के सभी कार्यक्रम संपन्न होने के बाद सरोज भाभी, चिरंजीवी पुनीत एवं चिरंजीवी नवनीत परिवार के साथ 19 नवंबर को बेंगलुरू चले गए।
श्रद्धांजलि सभा में श्री अर्जुन मुंडा पुष्प अर्पित करते हुए
हमारी बड़ी बहन मंजू की आरम्भिक शिक्षा लोरेटो कान्वेन्ट एवं मारवाड़ी कन्या पाठशाला तथा उच्च शिक्षा रांची विमेन्स कालेज में हुई। उनका विवाह 1976 में दिल्ली निवासी राकेश जी भुराड़िया के साथ सम्पन्न हुआ। उनका परिवार पिछले कई दशकों से कपड़ों का थोक व्यापार चांदनी चौक, के अपने प्रतिष्ठान से करता आ रहा है। उनकी बड़ी पुत्री मोनिषा का विवाह कोलकाता निवासी अभिषेक साबू के साथ हुआ। छोटी बेटी नेहा का विवाह नागपुर निवासी आकाश पचिसिया के साथ सम्पन्न हुआ तथा छोटे बेटे शोभित का विवाह दिल्ली निवासी नेहा के साथ हुआ। शोभित पिछले कई वर्षों से जापान की एक बैंक की दिल्ली शाखा में उच्च पद पर कार्यरत है।
हमारी चार पीढ़ियां
1960 --->
1990
2020
10 जुलाई -1994 को सूर्य उपासना भवन, बुंडू में
स्वामी रामदेव जी महाराज की उपस्थिति में भगवान भास्कर जी के प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तस्वीरें