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विद्युत बोर्डों की हालत खस्ता : मारू



Date : 25-05-2022

यह बताने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए विद्युत सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है. लोगों का जीवन स्तर ठीक रहे, इसके लिए जरूर है कि सभी नागरिकों को बिजली उचित दर पर और अच्छी क्वालिटी की उपलब्ध हो. पिछले कुछ माह से झारखंड विशेषकर रांची में बिजली संकट चरम पर है.

बिजली संकट का एक बड़ा कारण है राज्य विद्युत बोर्डों की खस्ता हालत. अधिकांश विद्युत बोर्ड खस्ता आर्थिक हालत से गुजर रहे हैं. बिजली की खपत के मुकाबले राजस्व वसूली बहुत कम है. इसके दो प्रमुख कारण हैं. एक तो ट्रांसमिशन के दौरान नुकसान और दूसरी बिजली चोरी. आंकड़ों के अनुसार ट्रांसमिशन और वितरण के दौरान 35 से 45% बिजली का नुकसान हो जाता है. ट्रांसमिशन लाइन पुरानी पड़ चुकी है, तकनीकी रूप से प्रणाली में कई खामियां हैं और बिजली चोरी एक समस्या है ही. सवाल है कि उत्पादन की आधी बिजली जब यूं ही बर्बाद हो जाएगी तो समस्या तो होनी ही है. इस पर काबू पाने का एक ही तरीका है की ट्रांसमिशन लाइन की खामियों को दूर किया जाए तथा बिजली चोरी हर हाल में रोकी जाए. विद्युत ऑडिट का सुझाव भी कई बार दिया गया है पर अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है. इतना तो स्पष्ट है कि बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण तीनों की हालत सुधारने होगी. बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी, विद्युत उत्पादन संयंत्रों का आधुनिकीकरण करना होगा और ट्रांसमिशन लाइन ठीक करनी होगी. इसके लिए भारी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता है.

पूर्व में ग्रामीण विद्युतीकरण का अर्थ था सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराना. विद्युतीकृत गांव की परिभाषा में भी परिवर्तन किया गया है. फरवरी 2004 में इस परिभाषा को और व्यापक बनाया गया. इसके अनुसार किसी गांव को तभी विद्युतीकृत माना जाएगा यदि - 1) आबादी वाले इलाके में आधारभूत सुविधाएं जैसे ट्रांसफार्मर, वितरण लाइन इत्यादि मुहैया कराई गई हो (गैर पारंपरिक स्रोतों से विद्युतीकरण करने पर ट्रांसफार्मर जरूरी नहीं है.) 2) सार्वजनिक स्थलों जैसे विद्यालय, पंचायत भवन, स्वास्थ्य केंद्रों, समुदायिक भवनों को बिजली उपलब्ध कराई गई हो 3) विद्युतीकृत घरों की संख्या कुल घरों की संख्या का कम से कम 10% हो यह परिभाषा वित्तीय वर्ष 2004-05 से लागू हो गई है. ग्रामीण विद्युतीकरण के मामले में पांच राज्य सबसे पिछड़े हुए हैं, जिनमें झारखंड भी एक है. चार अन्य राज्य हैं - उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और मेघालय. यदि घरों को इकाई माना जाए तो झारखंड में 10 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण घरों का विद्युतीकरण हुआ है.

एक बड़ी जरूरत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल की है. थर्मल पावर स्टेशन एवं हाइडल पावर स्टेशन की स्थापना में सब में भी लगता है और लागत भी. इसलिए छोटी-छोटी मिनी हाइडल परियोजनाओं पर काम किया जाना चाहिए. इनके अतिरिक्त सौर ऊर्जा तथा अन्य गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल पर भी और अधिक कार्य होना चाहिए. झारखंड में छोटे-छोटे हाइडल प्रयोजना बनाने के लिए चिन्हित किया गया था.

देश में हाइडल पावर के दो स्रोत हैं, अभी उनका भी पूरी तरह दोहन नहीं हुआ है. आंकड़ों के अनुसार अभी तक मात्र 17 प्रतिशत जल स्रोतों का ही उपयोग हो पाया है. इस बात का उल्लेख भी किया जा सकता है कि 1963 में हाइडल पावर का कुल विद्युत उत्पादन में योगदान 50% था, जबकि 2001-02 में यह घटकर मात्र 25% रह गया. इस ओर अब अधिक ध्यान देने की जरूरत है. कुल मिलाकर बिजली की स्थिति में सुधार के लिए सरकार को सुधार की प्रक्रिया तेज करनी होगी. समस्या यह है कि आज भी हम कोयले पर आधारित विद्युत पावर प्लांट पर निर्भर हैं. जब कोयले की कमी हो जाती है तब थर्मल पावर स्टेशन उत्पादन काफी घट जाता है. इससे बिजली संकट बढ़ जाता है. एनडीए की सरकार ने बिजली संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाया है.

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